गंग कवि sentence in Hindi
pronunciation: [ ganega kevi ]
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- गंग कवि बहुत निर्भीक होकर बात कहते थे।
- गंग कवि के जन्मकाल तथा कुल आदि का ठीक वृत्त ज्ञात नहीं।
- अकबर के समय में गंग कवि ने जैसी खड़ी बोली लिखी थी
- से प्रभावित होकर गंग कवि ने एक बार उनसे यह दोहा कहा-
- गंग कवि और रहीम के बीच इस सम्बन्ध में हुआ संवाद प्रसिद्घ है।
- गंग कवि को तो जहाँगीर ने हाथी के पैरों तले कुचलवा ही दिया था।
- गंग कवि को तो जहाँगीर ने हाथी के पैरों तले कुचलवा ही दिया था।
- उनकी दानशीलता और विनम्रता से प्रभावित होकर गंग कवि नेएक बार उनसे यह दोहा कहा-
- अकबर के समय में गंग कवि ने ' चंद छंद बरनन की महिमा' नामक एक गद्य पुस्तक
- रहीम की दानशीलता और विनम्रता से प्रभावित होकर गंग कवि ने एक बार उनसे यह दोहा कहा-
- रहीम ने गंग कवि की बात का उत्तर बड़ी विनम्रतापूर्वक दिया-देनदार कोऊ और है, भेजत सो दिन रैन।
- गंग कवि ने रहीम से पूछा-सीखे कहां नवाबजू, ऐसी दैनी देन ज्यों-ज्यों कर ऊंचा करो त्यों-त्यों नीचे नैन।।
- गंग कवि को उसके दो पदों छंदों पर प्रसन्न होकर रहीम ने एक बार छत्तीस लाख रुपए दे दिए थे ।
- उनकी दानशीलता और विनम्रता से प्रभावित होकर गंग कवि ने एक बार उनसे यह दोहा कहा-' सीखे कहाँ नवाब जू, ऐसी दैनी दैन।
- ‘संस्कृति के चार अध्याय ' में हिन्दी भाषा के विकास पर श्री रामधारी सिंह दिनकर अकबर के दरबारी कवि गंगाधर उर्फ गंग कवि (1538-1625 ई.) के खड़ी बोली में लिखित “चंद छंद बरनन की महिमा” नामक एक पुस्तक के गद्यांश का उल्लेख करते हैं-“सिद्धि श्री 108 श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपतिजी अकबरसाहजी आमखास में तखत ऊपर विराजमान हो रहे।
- ‘संस्कृति के चार अध्याय ' में हिन्दी भाषा के विकास पर श्री रामधारी सिंह दिनकर अकबर के दरबारी कवि गंगाधर उर्फ गंग कवि (1538-1625 ई.) के खड़ी बोली में लिखित “एक 'चंद छंद बरनन की महिमा” नामक एक गद्य पुस्तक के अंश का उल्लेख करते हैं-“सिद्धि श्री 108 श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपतिजी अकबरसाहजी आमखास में तखत ऊपर विराजमान हो रहे।
- ‘सं स्कृति के चार अध्याय ' में हिन्दी भाषा के विकास पर श्री रामधारी सिंह दिनकर अकबर के दरबारी कवि गंगाधर उर्फ गंग कवि (1538-1625 ई.) के खड़ी बोली में लिखित “चंद छंद बरनन की महिमा” नामक एक पुस्तक के गद्यांश का उल्लेख करते हैं-“ सिद्धि श्री 108 श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपतिजी अकबरसाहजी आमखास में तखत ऊपर विराजमान हो रहे।
- ‘ सं स्कृति के चार अध्याय ' में हिन्दी भाषा के विकास पर श्री रामधारी सिंह दिनकर अकबर के दरबारी कवि गंगाधर उर्फ गंग कवि (1538-1625 ई.) के खड़ी बोली में लिखित “ चंद छंद बरनन की महिमा ” नामक एक पुस्तक के गद्यांश का उल्लेख करते हैं-“ सिद्धि श्री 108 श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपतिजी अकबरसाहजी आमखास में तखत ऊपर विराजमान हो रहे।
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